ऐ शम्-ए-दिल-अफ़रोज़ शब-ए-तार-ए-मोहब्बत बख़्शे है यही गर्मी-ए-बाज़ार-ए-मोहब्बत करते हैं अबस मुझ दिल-ए-बीमार का दरमाँ वाबस्ता मिरी जाँ से है आज़ार-ए-मोहब्बत ऐ लाला-रुख़ाँ उन के तईं दाग़ न समझो फूला है मिरे सीने में गुलज़ार-ए-मोहब्बत गर हम से छुपाता है तू 'बेदार' व-लेकिन इंकार ही तेरा है ये इक़रार-ए-मोहब्बत रहता है मिरी जान कहीं इश्क़ भी पिन्हाँ ज़ाहिर हैं तिरी शक्ल से आसार-ए-मोहब्बत