मवाक़े' इश्क़ के वो अब कहाँ हैं अदाएँ यार की दर्द-ए-ज़बाँ हैं नहीं बनती है आपस में कोई बात हमारे दरमियाँ कुछ तल्ख़ियाँ हैं हमें मिलने नहीं अब कोई आता मुक़द्दर में यही तन्हाइयाँ हैं हैं ये भी एक हिस्सा ज़िंदगी का इधर दुख हैं उधर शहनाइयाँ हैं पलट कर जा नहीं सकते वतन में हमारी राह में बर्बादियाँ हैं न जाओ ख़ुद हमें पढ़ लो सबक़ लो हमी मग़रिब-ज़दों की दास्ताँ हैं न खुलवाओ मिरा मुँह अंजुमन में मिरे दिल में कई बातें निहाँ हैं वफ़ा बढ़ती है जिन रिश्तों से ऐ दोस्त वही रिश्ते हमारे दरमियाँ हैं नज़र आता नहीं सच्चाई का लफ़्ज़ ये कैसे रहनुमाओं के बयाँ हैं