इज़्न-ए-ख़िराम लेते हुए आसमाँ से हम हट कर चले हैं रहगुज़र-ए-कारवाँ से हम क्या पूछते हो झूमते आए कहाँ से हम पी कर उठे हैं ख़ुम-कदा-ए-आसमाँ से हम क्यूँकर हुआ है फ़ाश ज़माने पे क्या कहें वो राज़-ए-दिल जो कह न सके राज़-दाँ से हम हमदम यही है रहगुज़र-ए-यार-ए-ख़ुश-ख़िराम गुज़रे हैं लाख बार इसी कहकशाँ से हम क्या क्या हुआ है हम से जुनूँ में न पूछिए उलझे कभी ज़मीं से कभी आसमाँ से हम हर नर्गिस-ए-जमील ने मख़मूर कर दिया पी कर उठे शराब हर इक बोस्ताँ से हम ठुकरा दिए हैं अक़्ल ओ ख़िरद के सनम-कदे घबरा चुके थे कशमकश-ए-इम्तिहाँ से हम देखेंगे हम भी कौन है सज्दा तराज़-ए-शौक़ ले सर उठा रहे हैं तिरे आस्ताँ से हम बख़्शी हैं हम को इश्क़ ने वो जुरअतें 'मजाज़' डरते नहीं सियासत-ए-अहल-ए-जहाँ से हम
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