एक अनहोनी का डर है और मैं दश्त का अंधा सफ़र है और मैं हसरत-ए-तामीर पूरी यूँ हुई हसरतों का इक नगर है और मैं बाम-ओ-दर को नूर से नहला गया एक उड़ती सी ख़बर है और मैं मश्ग़ला ठहरा है चेहरे देखना उस के घर की रहगुज़र है और मैं जब से आँगन में उठी दीवार है इस हवेली का खंडर है और मैं वक़्त के पर्दे पे अब तो रोज़-ओ-शब इक तमाशा-ए-दिगर है और मैं जाने क्या अंजाम हो 'नासिर' मिरा एक यार-ए-बे-ख़बर है और मैं