इक बात बहुत ख़ास थी चेहरों के सफ़र में टूटे हुए आइने मिले राहगुज़र में रहता हूँ उजालों के अँधेरों के सफ़र में ये किस ने मुझे बाँट दिया शाम-ओ-सहर में दीवानगी-ए-शौक़ की अज़्मत है नज़र में सहराओं की तस्वीर लगा रक्खी है घर में जब तक कि न आ जाऊँ मैं साहिल की नज़र में रहने दे मुझे गर्दिश-ए-तक़दीर भँवर में आ जाए अगर बाल तो मिट जाते हैं जौहर मैं रखता नहीं टूटा हुआ आइना घर में बढ़ जाएगी ऐ हम-सफ़रो दूरी-ए-मंज़िल गुज़री हुई बातों को न दोहराओ सफ़र में हो प्यार तो आसानी से आ सकता है 'सौलत' जन्नत का मज़ा छोटे से टूटे हुए घर में