एक बजा है रात का अब तो सोने दो मोबाइल भी गर्म है ठंडा होने दो आज तो प्यासे सब्र के घर में यकजा हैं दरियाओं को आज अकेला रोने दो सोच लो दिल को बाहर छोड़ के आए तो हम दो में से रह जाएँगे पौने दो आँधी ने जो भर दी है इन आँखों में जाने किस की गर्द है आँखें धोने दो इस सोफा पर लेट के मैं सो जाऊँगा उन के ख़्वाब को बिस्तर पर ही सोने दो