इक बार अपना ज़र्फ़-ए-नज़र देख लीजिए फिर चाहे जिस के ऐब-ओ-हुनर देख लीजिए क्या जाने किस मक़ाम पे किस शय की हो तलब चलने से पहले ज़ाद-ए-सफ़र देख लीजिए हो जाएगा ख़ुद आप को एहसास बे-रुख़ी गर आप मेरा ज़ख़्म-ए-जिगर देख लीजिए सब की तरफ़ है आप की चश्म-ए-नवाज़िशात काश एक बार आप इधर देख लीजिए तारे मैं तोड़ लाऊँगा आकाश से मगर शफ़क़त से आप बाज़ू-ओ-पर देख लीजिए जम्हूरियत का दर्स अगर चाहते हैं आप कोई भी साया-दार शजर देख लीजिए हो जाएगी हक़ीक़त-ए-शम्स-ओ-क़मर अयाँ उन को निगाह भर के अगर देख लीजिए ये बर्क़-ए-हादिसात भी क्या ज़ुल्म ढाएगी उठने लगे गुलों से शरर देख लीजिए 'आजिज़' चली हैं ऐसी तअ'स्सुब की आँधियाँ उजड़े हुए नगर के नगर देख लीजिए