इक बे-क़रार दिल से मुलाक़ात कीजिए जब मिल गए हैं आप तो कुछ बात कीजिए पहले-पहल हुआ है मिरी ज़िंदगी में दिन ज़ुल्फ़ों में मुँह छुपा के न फिर रात कीजिए नज़रों से गुफ़्तुगू की हदें ख़त्म हो चुकीं जो दिल में है ज़बाँ से वही बात कीजिए कल इंतिक़ाम ले न मिरा प्यार आप से इतना सितम न आज मिरे साथ कीजिए बस एक ख़ामुशी है हर इक बात का जवाब कितने ही ज़िंदगी से सवालात कीजिए नज़रें मिला मिला के नज़र फेर फेर के मजरूह और दिल के न हालात कीजिए दिल के सिवा किसी को नहीं जिन की कुछ ख़बर दुनिया से किया बयाँ वो हिकायात कीजिए