इक छेड़ थी जफ़ाओं का तेरी गिला न था तर्क-ए-तअल्लुक़ात मिरा मुद्दआ' न था नासेह वो शोख़ दुश्मन-ए-ईमाँ था वाक़ई और फिर मिरा मिज़ाज भी कुछ आशिक़ाना था टूटा है अपने ज़ोम-ए-वफ़ा का तिलिस्म आज महसूस हो रहा है कि तू बेवफ़ा न था हम ख़ुद भी तर्क-ए-राह-ए-वफ़ा पर हैं मुन्फ़इल पर क्या करें कि और कोई रास्ता न था जब से जुदा हुए हैं तबीअ'त उदास है और लुत्फ़ ये कि तुझ से कोई मुद्दआ' न था