एक डर सा लगा हुआ है मुझे वो बिना शर्त चाहता है मुझे खुल के रोने के दिन तमाम हुए अब मिरा ज़ब्त देखना है मुझे मर रहा हूँ उसी सुकून के साथ साँस लेने का तजरबा है मुझे एक जाँ एक तन हैं हिज्र और मैं तेरा आना भी अब सज़ा है मुझे अब मैं ख़ामोश होने वाला हूँ क्या कोई शख़्स सुन रहा है मुझे चुप रहा मैं इसी लिए 'कान्हा' मुझ से बेहतर वो जानता है मुझे