इक दिन तमाम फ़र्ज़ अदा कर दिए गए सारे असीर-ए-ज़ात रिहा कर दिए गए वो ही तो ग़म-गुसार हमारे थे शहर में सुनते हैं अब के वो भी ख़ुदा कर दिए गए दो दिल किसी भी तरह न जब हो सके अलग दो नाम ही वरक़ पे जुदा कर दिए गए वो फुर्क़तों के दिन थे वो वक़्त-ए-उरूज था कितने ही ज़ख़्म दिल को कमा कर दिए गए शाम-ए-सियह बस अपना सा मुँह ले के रह गई सारे चराग़ नज़्र-ए-हवा कर दिए गए कुछ ग़म-नसीब इश्क़ थे कुछ ग़म-नसीब ज़ीस्त कुछ ग़म मिज़ाज-ए-दिल पे अता कर दिए गए दरकार हो गया था कहानी में कुछ नया हम लोग इस लिए भी जुदा कर दिए गए इक चेहरा-ए-हसीन मिटाने की ज़िद थी और आँखों के सारे रंग फ़ना कर दिए गए कुछ रोज़ बा'द हो गए जब ख़ुगर-ए-क़फ़स चुपके से सब परिंदे रिहा कर दिए गए