इक ग़ैर कि महफ़िल से उठाया नहीं जाता इक मैं कि कभी साथ बिठाया नहीं जाता सुनने को तो राज़ी हैं वो हाल-ए-दिल-ए-बेताब अफ़्सोस मुझी से ये सुनाया नहीं जाता इस ज़ोफ़-ओ-नक़ाहत का बुरा हो कि शब-ए-वस्ल वो पास हैं और हाथ लगाया नहीं जाता तुम देख के मुझ को तो गिरा देते थे पर्दा मुँह सामने ग़ैरों के छुपाया नहीं जाता जिस रोज़ से अग़्यार ने भड़काया है उन को मैं बज़्म में उस दिन से बुलाया नहीं जाता ख़त ग़ैर का भेजा है मुझे यार ने क़ासिद क़िस्मत का लिखा सच है मिटाया नहीं जाता ग़म-दोस्त वो हूँ मेरी तसल्ली नहीं होती जब तक कि मैं जी भर के सताया नहीं जाता ले ले के मिरा नाम दिया करते हैं गाली मैं दिल से कभी उन को भुलाया नहीं जाता आँखें तो मिलाते हैं ग़ज़बनाक वो हो कर अफ़्सोस है दिल उन से मिलाया नहीं जाता अब ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ का नहीं यारा मुझे हरगिज़ राज़-ए-दिल-ए-बेताब छुपाया नहीं जाता अल्लह रे नज़ाकत कि मिरे क़त्ल पे 'नश्तर' उस शोख़ से ख़ंजर भी उठाया नहीं जाता