इक हम हैं गिला करने की हिम्मत नहीं करते इक तुम हो कि ख़्वाबों को हक़ीक़त नहीं करते जाओ तो मगर अक्स कोई छोड़ न जाना अब आइने अक्सों की हिफ़ाज़त नहीं करते अब चाँद का अरमाँ भी सर-ए-शाम नहीं है आँखों के झरोके भी शिकायत नहीं करते हम धूप से नर्मी की उमीदें ही रखे जाएँ हर-चंद कि साए भी मुरव्वत नहीं करते रहरव हैं हर इक पेड़ से मिल लेते हैं 'फ़ाख़िर' साया नहीं मिलता तो शिकायत नहीं करते