एक ही आवाज़ पर वापस पलट आएँगे लोग तुझ को फिर अपने घरों में ढूँडने जाएँगे लोग डूबते सूरज की सूरत मेरा चेहरा देख लो फिर कहाँ बाब-ए-मआनी ढूँडने जाएँगे लोग मत कहो क़िस्मत है अपनी बे-दिली नाग़ुफ़्तनी फिर सहर होगी दरख़्शाँ फिर भले आएँगे लोग पल झपकने तक है ये हंगामा-ए-वारफ़्तगी जब नज़र से दूर होगे भूलते जाएँगे लोग फिर नई ख़्वाहिश के ज़र्रों से बनाएँगे नगर फिर नई रस्म-ए-तलब रस्म-ए-वफ़ा लाएँगे लोग मुनहसिर रंगों की आतिश पर नहीं है दिलकशी मैले कपड़ों में भी तुझ को देखने आएँगे लोग