एक ही बार नहीं है वो दोबारा कम है मैं वो दरिया हूँ जिसे अपना किनारा कम है वही तकरार है और एक वही यकसानी इस शब-ओ-रोज़ में अब अपना गुज़ारा कम है मेरे दिन रात में करना नहीं अब इस को शुमार हिस्सा-ए-उम्र कोई मैं ने गुज़ारा कम है मैं ज़ियादा हूँ बहुत उस के लिए अब तक भी और मेरे लिए वो सारे का सारा कम है उस की अपनी भी तवज्जोह नहीं मुझ पर कोई ख़ास और मैं ने भी अभी उस को पुकारा कम है आज पानी जो उछलता नहीं पहले की तरह ऐसा लगता है कि इस में कोई धारा कम है हाथ पैर आप ही मैं मार रहा हूँ फ़िलहाल डूबते को अभी तिनके का सहारा कम है मैं तो रखता हूँ बहुत रोज़ के रोज़ इन का हिसाब आसमाँ पर कोई आज एक सितारा कम है पेश-रफ़्त और अभी मुमकिन भी नहीं है कि 'ज़फ़र' अभी उस शोख़ पे कुछ ज़ोर हमारा कम है