इक हूक सी जब दिल में उट्ठी जज़्बात हमारे आ पहुँचे अल्फ़ाज़ जो ज़ेहन में मौज़ूँ थे होंटों के किनारे आ पहुँचे हालात ग़म-ए-दिल कह न सके और दर्द-ए-दरूँ भी सह न सके आँसू जो हिसार-ए-चश्म में थे पलकों के सहारे आ पहुँचे मझंदार में थे और डर ये था कि डूब ही जाएँगे अब हम मौजों में जो लहराई कश्ती तिनकों के सहारे आ पहुँचे हम जोश-ए-जवानी में आ कर इक ला-महदूद सफ़र में थे मालूम हुआ मंज़िल ये न थी जब घाट किनारे आ पहुँचे इक उम्र गुज़ारी थी हम ने मज़लूमों की ही हिमायत में जब गोशा-नशीनी की ठानी फिर ज़ुल्म के मारे आ पहुँचे बचपन में बहुत दुख होता था मज़लूम की आह-ओ-ज़ारी पर होते ही जवाँ बहलाने को दुनिया के नज़ारे आ पहुँचे दुनिया के हवादिस ने इतना पामाल किया हम को 'जौहर' बचने की कोई उम्मीद न थी क़िस्मत के सितारे आ पहुँचे