एक ज़माने में जब हम तुम दोनों ही जोशीले थे इस दुनिया के सारे मौसम ठंडे थे बर्फ़ीले थे देखने वाले माल-ओ-ज़र क्या जान लुटाया करते थे ख़द्द-ओ-ख़ाल बदन के कितने महँगे थे ख़रचीले थे सामने उस के जाते थे तो मोहर-ब-लब रह जाते थे बाहर से हम शोख़ बहुत थे अंदर से शर्मीले थे क़िस्मत का ये खेल भी देखो खेल की जब तक उम्र रही कूज़ा-गर के चाक से उतरे सारे खिलौने गीले थे फूल सी बातें फूल सा लहजा फूल से लब थे फूल से गाल लेकिन शाख़-ए-बदन के सारे ख़ार बहुत नोकीले थे उन आँखों में सहरा की अब रेत चमकती रहती है उन आँखों में जिन आँखों के ख़्वाब बहुत चमकीले थे