इक ज़मीं-दोज़ आसमाँ हूँ मैं हाँ मिरी जान बे-निशाँ हूँ मैं मुझ को तौहीद हो चुकी अज़बर ला-मकाँ का नया मकाँ हूँ मैं दस्त-ए-क़ुदरत की शाह-कारी का ख़ुद में आबाद इक जहाँ हूँ मैं कब से आमादा सज्दा-रेज़ी पर आब-ओ-गिल ही के दरमियाँ हूँ मैं मौत से कहिए आए फ़ुर्सत में अभी मसरूफ़-ए-इम्तिहाँ हूँ मैं किस तरह से बने ज़ियादा बात ज़र्रा-ए-कुन हूँ कम-ज़बाँ हूँ मैं लौ से बहती हुई ज़िया हो तुम लौ से उठता हुआ धुआँ हूँ मैं जैसे तू मेरा राज़-ए-पिन्हाँ है ऐसे ही तेरा राज़-दाँ हूँ मैं जिस से लर्ज़ां है पत्थरों का वजूद आईना-ज़ाद वो फ़ुग़ाँ हूँ मैं मौत तो कब की मर चुकी लेकिन बज़्म-ए-इम्काँ में जावेदाँ हूँ मैं तुम तसलसुल नई बहारों का और उजड़ी हुई ख़िज़ाँ हूँ मैं तेरी यादों का इस में दोश नहीं बे-सबब आज नीम-जाँ हूँ मैं