एक काफ़िर-अदा ने लूट लिया उन की शर्म-ओ-हया ने लूट लिया इक बुत-ए-बेवफ़ा ने लूट लिया मुझ को तेरे ख़ुदा ने लूट लिया आश्नाई बुतों से कर बैठे आश्ना-ए-जफ़ा ने लूट लिया हम ये समझे कि मरहम-ए-ग़म है दर्द बन कर दवा ने लूट लिया उन के मस्त-ए-ख़िराम ने मारा उन की तर्ज़-ए-अदा ने लूट लिया हुस्न-ए-यकता की रहज़नी तौबा इक फ़रेब-ए-नवा ने लूट लिया होश-ओ-ईमान-ओ-दीन क्या कहिए शोख़ी-ए-नक़श-ए-पा ने लूट लिया रहबरी थी कि रहज़नी तौबा हम को फ़रमाँ-रवा ने लूट लिया एक शोला-नज़र ने क़त्ल किया एक रंगीं-क़बा ने लूट लिया हम को ये भी ख़बर नहीं 'गुलज़ार' कब बुत-ए-बेवफ़ा ने लूट लिया हाए वो ज़ुल्फ़-ए-मुश्क-बू तौबा हम को बाद-ए-सबा ने लूट लिया उन को 'गुलज़ार' मैं ख़ुदा समझा मुझ को मेरे ख़ुदा ने लूट लिया