इक क़तरा ख़ून क्या मिरे दिल का टपक गया वीराना-ए-हयात बदामाँ महक गया पैराहन-ए-दिल आतिश-ए-गुल से लहक गया ख़िरमन में आरज़ूओं के शो'ला भड़क गया आते ही उन की याद ख़ुशी महव हो गई कोहरा छटा तो दर्द का सूरज चमक गया मारा फिरा तलाश-ए-मोहब्बत में दर-ब-दर अपने ही घर पहुँच के मैं अफ़्सोस थक गया ऐ ज़ब्त देख कम हुई जाती है रौशनी शायद मिरी नज़र से मिरा ग़म झलक गया जब भी हुआ कि बोलते कुछ तिश्ना-आरज़ू चश्म-ए-सियाह-ए-यार का साग़र खनक गया गुम दश्त-ए-ज़िंदगी में हुआ कारवान-ए-शौक़ चेहरा ग़ुबार-ए-रंज-ओ-अलम से चमक गया 'बर्क़' आगही ने अपनी इक अंगड़ाई सी जो ली देखा लिबास-ए-हुस्न-ए-तमन्ना मसक गया