एक ख़ामोशी ने सदा पाई By Ghazal << जिन से उठता नहीं कली का ब... दश्त में यार को पुकारा जा... >> एक ख़ामोशी ने सदा पाई ढाई हर्फ़ों में फिर वो हकलाई चार दीवार चंद छिपकलियाँ हिज्र की रात के तमाशाई डूबने का उसे मलाल नहीं जिस ने देखी नदी की रानाई आख़िरी ट्रेन थी तिरी जानिब जो ग़लत प्लेटफार्म पर आई बारिशों ने हमें उदास किया सील दीवार में उतर आई Share on: