एक ख़ुश्बू दिल-ओ-जाँ से आई इक महक ज़ख़्म-ए-ज़बाँ से आई दश्त-ए-बे-आब की मानिंद था मैं ये नई मौज कहाँ से आई सर्द थी मौत की मानिंद हयात आँच सी शोला-ए-जाँ से आई इतनी रौनक़ सर-ए-बाज़ार-ए-वफ़ा मेरे सौदा-ए-ज़ियाँ से आई कितनी तारीक थीं रातें मेरी रौशनी किस के मकाँ से आई इश्क़ की दौलत-ए-बेदार 'सलीम' हुस्न पर हुस्न-ए-गुमाँ से आई