इक ख़्वाब को आँखें रेहन रखें इक शौक़ में दिल वीरान किया जीने की तमन्ना में हम ने मरने का सभी सामान किया हम ख़ाक उड़ाते फिरते हैं इस दश्त-ए-तलब में फिर इक दिन इक़्लीम-ए-जुनूँ उस ने बख़्शी और दिल का हमें सुल्तान किया क्या कहिए करिश्मा-साज़ थे क्या आग़ाज़-ए-मोहब्बत के वो दिन जब ख़ुद से भी हम हैरान हुए उस ने भी बहुत हैरान किया अब हिज्र का मौसम आ पहुँचा हम जान गए थे जब दिल में इक दर्द ने डेरा डाल लिया इक दुख ने बयाँ इम्कान किया इक उम्र से चुप था दिल दरिया इक रोज़ मगर फिर उमड पड़ा तन मन सब जिस में डूब गए हर मौज ने वो तूफ़ान किया