एक लम्हा ठहर गया मुझ में वक़्त जैसे कि क़ैद था मुझ में कितने एहसास भर गया मुझ में रख गया कौन आइना मुझ में कितने सूरज नए उभर आए आसमाँ जब बिखर गया मुझ में सारे मंज़र मिरे इशारों पर बस गई है तिरी अदा मुझ में कौन सहरा में बस गया आ कर पेड़ उगने लगा घना मुझ में मैं कहाँ रात का मुसाफ़िर था चाँद ख़ुद आ के बस गया मुझ में ऐ हवा तेज़-गाम मत चलना जल रहा है कहीं दिया मुझ में