एक मैं और इक क़मर जागे क्या ज़रूरी था हर पहर जागे आसमानी बलाएँ नाज़िल कर ऐ ख़ुदा दिल में तेरा डर जागे नींद आ जाए बीते क़िस्सों को हर सहर इक नई ख़बर जागे कौन है वो जो ख़्वाब बन बन कर मेरी आँखों में रात भर जागे इक सफ़र है मोहब्बतों का जहाँ पाँव सो जाएँ रहगुज़र जागे जब ज़रा माँद हो थकन तो 'हनीफ़' मुझ में फिर जज़्बा-ए-सफ़र जागे