एक मिश्अल थी बुझा दी उस ने By Ghazal << अमीर लाख इधर से उधर ज़मान... आ गई सर पर क़ज़ा लो सारा ... >> एक मिश्अल थी बुझा दी उस ने फिर अंधेरों को हवा दी उस ने किस क़दर फ़र्त-ए-अक़ीदत से झुका और फिर ख़ाक उड़ा दी उस ने दम-ब-दम मुझ पे चला कर तलवार एक पत्थर को जिला दी उस ने याँ तो आता ही नहीं था कोई आन कर बज़्म सजा दी उस ने Share on: