इक मुसलसल ग़म का सामाँ है जहाँ रहता हूँ मैं फ़िक्र हैराँ दिल परेशाँ है जहाँ रहता हूँ मैं अपने शानों पर उठा के अपने अरमानों की लाश बद-तर-अज़-हैवान इंसाँ है जहाँ रहता हूँ मैं इक मुसलसल कश्मकश दैर-ओ-हरम के दरमियाँ हर-नफ़स महबूस-ए-इरफ़ाँ है जहाँ रहता हूँ फ़न बराए फ़न तअ'य्युश के लिए मख़्सूस है शायरी सैद-ए-ग़ज़ालाँ है जहाँ रहता हूँ मैं हुस्न की ज़रदार के हाथों हुई मिट्टी ख़राब इश्क़ सैद-ए-रंज-ए-दौराँ है जहाँ रहता हूँ मैं इशरतें घबरा रही हैं पास आने को मिरे निकहतों का एक तूफ़ाँ है जहाँ रहता हूँ मैं अध-खिली कलियाँ शगूफ़े मुज़्महिल अफ़्सुर्दा गुल इक ख़िज़ाँ ता-हद्द-ए-इम्काँ है जहाँ रहता हूँ मैं क्यों मिरी बेचारगी पर हँस रहा है इक जहाँ क्यों ख़ुदा मुझ से गुरेज़ाँ है जहाँ रहता हूँ मैं