इक न इक शम् अँधेरे में जलाए रखिए सुब्ह होने को है माहौल बनाए रखिए दिल के हाथों से हमें ज़ख़्म-ए-निहाँ पहुँचे हैं वो भी कहते हैं कि ज़ख़्मों को छुपाए रखिए कौन जाने कि वो किस राहगुज़र पर गुज़रे हर गुज़रगाह को फूलों से सजाए रखिए दामन-ए-यार की ज़ीनत न बने हम अफ़्सोस अपनी पलकों के लिए कुछ तो बचाए रखिए