एक नई ज़ीस्त लिए आज अजल आई है क़ैद से हम ने रिहाई ही कहाँ पाई है उस से मिलने के लिए इस क़दर ऐ दिल न तड़प मेरा इज़हार-ए-मोहब्बत मिरी रुस्वाई है इन्क़िलाबात-ए-ज़माना को ज़माना समझे हम तो कहते हैं कि वो भी तिरी अंगड़ाई है जिस के शो'लों से हुई हुस्न की रंगत रौशन आग ऐसी मिरे जज़्बात ने सुलगाई है हम ने अरमानों की मय्यत को दिया है कांधा ऐ ग़म-ए-दिल ये तिरी हौसला-अफ़ज़ाई है है ये डर नूह का तूफ़ाँ न समझ ले दुनिया चादर-ए-अश्क-ए-वफ़ा हम ने जो फैलाई है आइना-ख़ाना-ए-दिल में वो ज़रूर आएँगे उन के दिल में भी तमन्ना-ए-ख़ुद-आराई है हाथ से साक़ी के पीना ही पड़ेगा मुझे अब मेरी तौबा-शिकनी बन के घटा छाई है 'अकमल' इंसान वो अकमल है ब-फ़ैज़-ए-फ़ितरत दर्द-ए-इंसाँ से जिस इंसाँ की शनासाई है