एक नाज़ुक दिल के अंदर हश्र बरपा कर दिया हाए हम ने क्यूँ ये इज़हार-ए-तमन्ना कर दिया अब नहीं है ख़ुश्क आँखों में सिवा वहशत के कुछ इंतिहा-ए-ग़म ने क्या दरिया को सहरा कर दिया उन के दर को छोड़ कर दर दर भटकते हम रहे वहशत-ए-दिल ने अजब अंजाम उल्टा कर दिया वसवसे उम्मीद के दम से जो थे सब मिट गए इंतिहा-ए-दर्द ने ग़म का मुदावा कर दिया लब पे लुक्नत आँखों में वहशत है चेहरा ज़र्द है इश्तियाक़-ए-हूर ने ज़ाहिद को कैसा कर दिया गो नहीं उम्मीद उस से थी इनायत की मगर ये था फ़र्ज़-ए-आशिक़ी हम ने तक़ाज़ा कर दिया इक निज़ा'-ए-मुस्तक़िल रहती है अक़्ल-ओ-शौक़ में तर्क-ए-उल्फ़त ने तो अब दुश्वार जीना कर दिया दिल तो था इक क़तरा-ए-ख़ूँ क्या हक़ीक़त उस की थी तेरे ग़म ने क़ुल्ज़ुम-ए-ज़ख़्ख़ार जैसा कर दिया इफ़्तिरा-ओ-मक्र से शायद तुझे मिलता वक़ार हक़-परस्ती ने तुझे ऐ 'कैफ़' रुस्वा कर दिया