इक नए मसअले से निकले हैं By Ghazal << है नसीम-ए-सुब्ह आवारा उसी... सुब्ह होती है तो दफ़्तर म... >> इक नए मसअले से निकले हैं ये जो कुछ रास्ते से निकले हैं काग़ज़ी हैं ये जितने पैराहन एक ही सिलसिले से निकले हैं ले उड़ा है तिरा ख़याल हमें और हम क़ाफ़िले से निकले हैं याद रहते हैं अब जो काम हमें ये उसे भूलने से निकले हैं Share on: