इक सज़ा और असीरों को सुना दी जाए या'नी अब जुर्म-ए-असीरी की सज़ा दी जाए दस्त-ए-नादीदा की तहक़ीक़ ज़रूरी है मगर पहले जो आग लगी है वो बुझा दी जाए उस की ख़्वाहिश है कि अब लोग न रोएँ न हँसें बे-हिसी वक़्त की आवाज़ बना दी जाए सिर्फ़ सूरज का निकलना है अगर सुब्ह तो फिर एक शब और मिरी शब से मिला दी जाए और इक ताज़ा सितम उस ने किया है ईजाद उस को इस बार ज़रा खुल के दुआ दी जाए