एक साँचे में ढाल रक्खा है By Ghazal << फ़ासला बीच का मिटा कैसे बोल देती है बे-ज़बानी भी >> एक साँचे में ढाल रक्खा है हम ने दिल को सँभाल रक्खा है तेरी दुनिया की भीड़ में मौला ख़ुद ही अपना ख़याल रक्खा है दर्द अब आँख तक नहीं आता दर्द को दिल में पाल रक्खा है चल के उल्फ़त की राह में देखा हर क़दम पर वबाल रक्खा है Share on: