इक साया-ए-शाम याद आया ख़ुशबू का ख़िराम याद आया धोया हुआ सात पानियों में क्या नाम था नाम याद आया लहजे में शगुफ़्तगी गुलों की इक शुस्ता कलाम याद आया अच्छा हुआ गोर तक तो पहुँचे यारों को सलाम याद आया ऐ मौजा-ए-बाद क्या हुआ है क्या ताज़ा पयाम याद आया कुछ और ज़मीं में गड़ गए हम जब अपना मक़ाम याद आया मक़्तल से मुड़ आए घर को 'गौहर' शायद कोई काम याद आया