एक सूरत तिरी बनाने में रंग मसरूफ़ हैं ज़माने में फैलती जा रही है ये दुनिया जश्न-ए-आवारगी मनाने में क़तरा क़तरा टपक रहा है दिल क़िस्सा-ए-आशिक़ी सुनाने में कैसे कैसे वजूद रौशन हैं वक़्त के नीले शामियाने में मेरा पैकर मुझे अता कर दे क्या कमी है तिरे ख़ज़ाने में