एक टहनी से बर्ग टूटा है सारी शाख़ों से ख़ून फूटा है अब तो क़िस्मत पे छोड़ दे मिलना तेज़ पानी में हाथ छूटा है मैं ने फूलों पे हाथ रक्खा था क्यूँ हथेली से ख़ून फूटा है वक़्त कर देगा फ़ैसला इस का कौन सच्चा है कौन झूटा है हँसने वाले को क्या ख़बर इस की मुझ पे कैसा पहाड़ टूटा है उस के फ़न में तो शक नहीं लेकिन ये भी मानो वो शख़्स झूटा है मैं कहूँ भी तो कौन मानेगा जिस कमाँ से ये तीर छूटा है किस को 'तौक़ीर' ये ख़बर होगी किस तअल्लुक़ से उस ने लूटा है