एक तस्वीर कि अव्वल नहीं देखी जाती देख भी लूँ तो मुसलसल नहीं देखी जाती देखी जाती है मोहब्बत में हर इक जुम्बिश-ए-दिल सिर्फ़ साँसों की रिहर्सल नहीं देखी जाती इक तो वैसे बड़ी तारीक है ख़्वाहिश-नगरी फिर तवील इतनी कि पैदल नहीं देखी जाती ऐसा कुछ है भी नहीं जिस से तुझे बहलाऊँ ये उदासी भी मुसलसल नहीं देखी जाती सामने इक वही सूरत नहीं रहती अक्सर जो कभी आँख से ओझल नहीं देखी जाती मैं ने इक उम्र से बटवे में सँभाली हुई है वही तस्वीर जो इक पल नहीं देखी जाती अब मिरा ध्यान कहीं और चला जाता है अब कोई फ़िल्म मुकम्मल नहीं देखी जाती इक मक़ाम ऐसा भी आता है सफ़र में 'जव्वाद' सामने हो भी तो दलदल नहीं देखी जाती