फ़ाएदा कुछ नहीं इशारों से हम बहुत दूर हैं किनारों से दिल मुनव्वर हुआ शरारों से हम को निस्बत है चाँद-तारों से ख़ूब महके ख़िज़ाँ के मौसम में ज़ख़्म खाए थे जो बहारों से गुल्सिताँ आप को मुबारक हो अपनी अज़्मत से रेग-ज़ारों से फूल बरसे हैं बा'द मर्ग उन पर शग़्ल करते रहे जो ख़ारों से याद फिर रंग में नज़र आई ज़िंदगी भर गई नज़ारों से इंतिज़ारी तो जान ले लेती सब्र मिलता रहा सितारों से कोई आवाज़ जब नहीं होती साज़ बुझते हैं दिल के तारों से दिल की गहराइयाँ कहाँ तक हैं 'शौक़' पूछो ये ग़म के मारों से