फ़ुग़ाँ के साथ तिरे राहत-ए-क़रार चले नवा-गरान-ए-वफ़ा हिम्मतों को हार चले ये क्या कि फूल खिले और ज़ख़्म रिसने लगे मिले सुकूँ भी अगर बाद-ए-नौ-बहार चले ये मुल्तफ़ित सी निगाहें फ़रोग़-ए-जाम के साथ चले ये दौर चले और बार-बार चले हज़ार बरहमी-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार भी देखी तुझे तो काकुल-ए-गीती मगर सँवार चले ख़याल-ओ-इल्म का भी मोल-तोल होता है हमारे अहद में क्या क्या न कारोबार चले हयात साथ चली काएनात साथ चली अजीब शान से कुछ लोग सू-ए-दार चले वही तो थे कभी चश्म-ओ-चराग़-ए-महफ़िल-ए-ग़म जो बे-क़रार से उट्ठे जो अश्क-बार चले थके थके से क़दम और तवील राह-ए-हयात मुसाफ़िरान-ए-अदम बोझ सा उतार चले ज़मीन-ए-फ़ैज़ सितारे लुटा रही है 'नज़र' ये क्या कि आप यहाँ से भी सोगवार चले