तुम्हारे ब'अद जो बिखरे तो कू-ब-कू हुए हम फिर इस के ब'अद कहीं अपने रू-ब-रू हुए हम तमाम उम्र हवा की तरह गुज़ारी है अगर हुए भी कहीं तो कभू कभू हुए हम यूँ गर्द-ए-राह बने इश्क़ में सिमट न सके फिर आसमान हुए और चार-सू हुए हम रही हमेशा दरीदा क़बा-ए-जिस्म तमाम कभी न दस्त-हुनर-मंद से रफ़ू हुए हम ख़ुद अपने होने का हर इक निशाँ मिटा डाला 'शनास' फिर कहीं मौज़ू-ए-गुफ़्तुगू हुए हम