फ़िराक़ में तो सताती है आरज़ू-ए-विसाल By Ghazal << समुंदरों में सराब और ख़ुश... ये रहगुज़र तो किसी रहगुज़... >> फ़िराक़ में तो सताती है आरज़ू-ए-विसाल शब-ए-विसाल में क्यूँ दर्द-ए-दिल दो-चंद हुआ ख़ुदा ही जाने कि क्या दिल पे चोट लगती है तुम्हारे पास जो आया वो दर्द-मंद हुआ न क्यूँकि जान दें इस रश्क से भला अपनी हमारा आज से जाना वहाँ पे बंद हुआ Share on: