फ़िराक़-ए-यार में कुछ कहिए समझाया नहीं जाता

फ़िराक़-ए-यार में कुछ कहिए समझाया नहीं जाता
दिल-ए-वहशी किसी सूरत से बहलाया नहीं जाता

हमीं ने चुन लिए फूलों के बदले ख़ार दामन में
फ़क़त गुलचीं के सर इल्ज़ाम ठहराया नहीं जाता

सर-ए-बाज़ार रुस्वा हो गए क्या हम न कहते थे
किसी सौदाई के मुँह इस क़दर आया नहीं जाता

गरेबाँ थाम लेंगे ख़ार तो मुश्किल बहुत होगी
गुलाबों की रविश पर इतना इठलाया नहीं जाता

महक जाएगी मेरी ख़ामुशी भी बू-ए-गुल हो कर
निदा-ए-हक़ को क़ैद-ओ-बंद में लाया नहीं जाता

उधर वो अहद-ओ-पैमान-ए-वफ़ा की बात करते हैं
इधर मश्क़-ए-सितम भी तर्क फ़रमाया नहीं जाता

'अनीस' उट्ठो नई फ़िक्रों से राहें ज़ौ-फ़िशाँ कर लो
मआ'ल-ए-लग़्ज़िश-ए-माज़ी पे पछताया नहीं जाता


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