फ़ैसला जब भी मिरे यार किया जाएगा सारी बस्ती को ख़बर-दार किया जाएगा नाम लेते हुए आएँगे दिवाने मेरा दश्त-ए-वहशत को अगर पार किया जाएगा हम से अंधों को तिरी शक्ल दिखाई देगी आम ऐसे तिरा दीदार किया जाएगा पहले सब ख़्वाब ज़मीं-बुर्द किए जाएँगे फिर मुझे नींद से बेदार किया जाएगा बस इसी आस पे बैठे हैं तिरी चौखट पर वक़्त आएगा तो इज़हार किया जाएगा लौट आएँगी बहारें मिरे वीराने में ख़ुश्क पेड़ों को समर-बार किया जाएगा तेरे आलम की सभी नज़्म बदल सकती है हम फ़क़ीरों को अगर ख़्वार किया जाएगा आतिश-ए-हिज्र में हो जाएँगे जब सुर्ख़ बदन तब कहीं आग को गुलज़ार किया जाएगा