फ़ित्ना-ए-गर्दिश-ए-अय्याम से जी डरता है साया-ए-ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम से जी डरता है दिन के सीने में धड़कते हुए लम्हों की क़सम शब की रफ़्तार-ए-सुबुक-गाम से जी डरता है वही तारीक दरीचे वही बे-नूर शफ़क़ परतव-ए-मेहर-ए-तही-दाम से जी डरता है वही बे-वज्ह उदासी वही बे-नाम ख़लिश रस्म-ए-राह-ए-दिल-ए-नाकाम से जी डरता है वही सुनसान फ़ज़ाएँ वही वीराँ सा नगर आ के बैठो तो दर-ओ-बाम से जी डरता है