फ़ज़ा में नग़्मा-ए-आवाज़-ए-पा है मेरे लिए कराँ से ता-ब-कराँ इक निदा है मेरे लिए मैं अपनी ज़ात में लौटा तो फिर मिला न मुझे वो एक शख़्स जो रोता रहा है मेरे लिए सबब है रंज का कुछ ख़ू-ए-इज़्तिराब मिरी कुछ अपने आप से भी वो ख़फ़ा है मेरे लिए फ़लक तमाम है आग़ोश-ए-बाब-ए-महरूमी शजर शजर यहाँ दस्त-ए-दुआ है मेरे लिए किसी फ़िराक़ की तम्हीद बन के रह जाना तिरे विसाल की तस्कीं भी क्या है मेरे लिए