फ़ज़ा-ए-सहन-ए-चमन आज साज़गार नहीं यहाँ बहार तो है रौनक़-ए-बहार नहीं हो लाख हुस्न-ए-सिफ़त आप ज़ी-वक़ार नहीं अमीर-ए-शहर की सफ़ में अगर शुमार नहीं सुकून छिन गया आसाइशों के मिलने से है कौन आज ग़मों से जो हम-कनार नहीं तबाहियों की तरफ़ गामज़न है ये दुनिया जहाँ ये अम्न हो ऐसा कोई दयार नहीं हो इस तरह से निगाह-ए-जहाँ में क़द्र मिरी ख़ुदा-ए-वक़्त हूँ मैं कोई शहर-यार नहीं हर एक चश्म-ए-करम में फ़रेब पिन्हाँ है कोई किसी का हक़ीक़त में ग़म-गुसार नहीं मिलेगी कैसे यहाँ पर किसी को प्यार की छाँव शजर ख़ुलूस का अब कोई साया-दार नहीं इसे ही कैफ़ियत-ए-इश्क़ कहते हैं शायद हमें सुकून नहीं है उन्हें क़रार नहीं अभी तो कम है तिरे तीर-ए-नीम-कश का असर अभी ये दिल मिरा तूफ़ाँ से हम-कनार नहीं अब इतनी गिर गई ये सतह-ए-दोस्ती अपनी हमें यक़ीन नहीं उन को ए'तिबार में शब-ए-फ़िराक़ डराए न ख़्वाब-ए-वहशत से हमें तो ख़्वाब की बातों का ए'तिबार नहीं ख़ुदा के ख़ौफ़ से आरी है उस का दिल 'अहसन' ख़ता पे अपनी ज़रा भी जो शर्मसार नहीं