फ़लक पर चाँद सा जो इक सितारा चल रहा है हमें ही देख कर उस का गुज़ारा चल रहा है ग़नीमत है कि आवाज़ों के भारी-पन से हट कर ज़बाँ ख़ामोश है लेकिन इशारा चल रहा है मुझे हो क्यों ग़रज़ कोई किसी भी आसमाँ से ज़मीं पर साथ जब मेरे सितारा चल रहा है इजाज़त ही नहीं कुछ और हम को देखने की अभी तो ख़्वाब आँखों में तुम्हारा चल रहा है तुम्हें देखूँ तो लगता है हमारे साथ 'ज्योति' मोहब्बत का अज़ल से इस्तिआरा चल रहा है