फ़लक पे जितने हैं तारे शुमार से बाहर निकल न जाएँ किसी दिन मदार से बाहर तिरी जुदाई का मौसम भी ख़ूबसूरत है मुझे निकाल रहा है ख़ुमार से बाहर किसी भी वक़्त ये मंज़र बदलने वाला है दिखाई देने लगा है ग़ुबार से बाहर उदास रुत है अभी तक मिरे तआक़ुब में ख़िज़ाँ के फूल खिले हैं बहार से बाहर तिरे करम से तो पत्थर भी बोल पड़ते हैं नहीं है कुछ भी वहाँ इख़्तियार से बाहर मिरे वजूद का गुम्बद है टूटने वाला निकलने वाला हूँ मैं इस हिसार से बाहर