कहीं सुकूँ न मिला दिल को बज़्म-ए-यार के बा'द कि बे-क़रार रही ज़िंदगी क़रार के बा'द उठे न पाँव मोहब्बत की रहगुज़ार के बा'द कोई क़याम नहीं है तिरे दयार के बा'द क़बाएँ चाक तो करते रहेंगे दीवाने कभी बहार से पहले कभी बहार के बा'द शराब-ए-इश्क़ का मय-कश रहा सदा मदहोश तेरी निगाह की मस्ती चढ़ी ख़ुमार के बा'द निगाह-ए-शौक़ ने दोनों जहाँ को छान लिया मिला न रंग कोई जल्वा-गह-ए-यार के बा'द तलब है उस की तो हो जाओ क़त्ल-ए-इश्क़ 'फ़ना' मिली हैं अज़्मतें मंसूर को भी दार के बा'द