फ़ना कहते हैं किस को मौत से पहले ही मर जाना बक़ा है नाम किस का अपनी हस्ती से गुज़र जाना जो रोका राह में हुर ने तो शह अब्बास से बोले मिरे भाई न ग़ुस्से में कहीं हद से गुज़र जाना कहा अहल-ए-हरम ने रोके यूँ अकबर के लाशे पर जवाँ होने का शायद तुम ने रक्खा नाम मर जाना बक़ा में था फ़ना का मर्तबा हासिल शहीदों को वहाँ इस पर अमल था मौत से पहले ही मर जाना न लेते काम गर सिब्त-ए-नबी सब्र-ओ-तहम्मुल से लईनों का निगाह-ए-ख़श्म से आसाँ था मर जाना दिखाई जंग में सूरत उधर जा पहुँचे वो कौसर ये असग़र ही की थी रफ़्तार इधर आना उधर जाना यहाँ का ज़िंदा रहना मौत से बद-तर समझता हूँ हयात-ए-जाविदाँ है कर्बला में जा के मर जाना